हमारी आँत की आकृति शंखाकार है। उस शंखाकार आँत का प्रक्षालन होना (शुद्ध करना) ही 'शंख प्रक्षालन' या 'वारिसार'क्रिया कहलाता है। इस क्रिया का हमने अनेक रोगी व्यक्तियों पर परीक्षण किया और पाया है कि इस क्रिया से व्यक्ति का वास्तव में कायाकल्प हो जाता है।
भयंकर जीर्ण रोगों को दूर करने में यह क्रिया सक्षम है। समस्त उदर रोग, मोटापा, बवासीर, उच्च रक्तचाप, मधुमेह, धतुरोग आदि कोई ऐसा रोग नहीं, जिसमें इस क्रिया से लाभ न होता हो।
हम प्रतिदिन अपने वस्त्रों को साफ करते हैं। यदि एक दिन भी वस्त्र नहीं धोए जाएँ तो वस्त्र मैले हो जाते हैं। हमारे उदर में भी लगभग 32 फुट लम्बी आँत है। उसकी सफाई हम जिंदगी में कभी नहीं करते। इससे उसकी दीवारों पर सूक्ष्म मल की पर्त बन जाती है।
उस पर्त के जम जाने से रसों के अवशोषण व निष्कासन (परित्याग) की जो ठीक-ठीक क्रिया होनी चाहिए, वह नहीं हो पाती, जिससे मन्दाग्नि, अपच, खट्टी डकारें आना आदि रोग उत्पन्न हो जाते हैं। मल के सड़ने से पेट में दुर्गन्ध् हो जाती है। गैस्टिक की बीमारी हो जाती है। रस का निर्माण ठीक से नहीं हो पाता। जब मुख्य यन्त्र ही विकृत हो जाता है तब सहायक यन्त्र आमाशय, अग्न्याशय (पेन्क्रियाज) आदि भी प्रभावित हो जाते हैं और विविध प्रकार के रोग उत्पन्न हो जाते हैं।
हमारा शरीर एक यन्त्र है। दुनिया के आश्चर्यों में एक बहुत बड़ा आश्चर्य है कि इतना अद्भुत यन्त्र किसने बनाया? जैसे हम वाद्य यंत्रों, गाड़ी, घड़ी व अन्य मशीनों की पूरी साफ-सफाई व मरम्मत करवाते हैं, जिससे ये यंत्र-मशीनें ठीक प्रकार से कार्य करते हैं, वैसे ही हमें अपने शरीर रूपी यंत्र की भी साफ-सफाई और ओवरहालिंग करना चाहिए, जिससे यह यंत्र स्वस्थ, दीर्घायु एवं बलिष्ठ बने।
क्रिया हेतु आवश्यक सामग्री :
एक ग्लास (पानी पीने के लिए), गुनगुना पानी, जिसमें उचित परिमाण में नींबू का रस एवं सैंधा नमक डला हुआ हो, चावल व मूँगदाल की पतली खिचड़ी, प्रति व्यक्ति के हिसाब से लगभग 100 ग्राम गाय का घी; गाय का घी यदि न मिले तो भैंस का ले सकते हैं। आसन करने हेतु दरी या कम्बल, ओढ़ने हेतु हल्की चादर तथा पास में ही शौचालय हो।
पूर्व तैयारी :
शंख प्रक्षालन क्रिया को करने से पहले कम से कम एक सप्ताह पूर्व ही आसनों का अभ्यास प्रारम्भ कर देना चाहिए। जिस दिन शंख प्रक्षालन करना हो उससे पूर्व रात्रि को सुपाच्य हल्का भोजन लगभग 8 बजे तक कर लेना चाहिए।
सायंकाल दूध में लगभग 50 से 100 ग्राम तक मुनक्का डालकर पी लें तो शुद्धि की क्रिया अति उत्तम होती है। रात्रि को 10 बजे से पूर्व रात्रि को सो जाएँ। दूसरे दिन प्रातः काल नित्यकर्म-स्नान, मंजन व शौच आदि से, यदि सम्भव हो तो निवृत्त हो जाएँ। यदि शौच न भी हो, तो कोई बात नहीं।
https://www.facebook.com/Gajanan.Yoga.Divine
http://gajananyog.blogspot.tw
https://twitter.com/gajananyog
https://www.youtube.com/gajananyog
https://www.instagram.com/gajananyoga/
https://in.linkedin.com/pub/gajanan-saraf/23/172/804
https://www.facebook.com/Gajanan.Yoga.Divine
Shri GAJANAN YOGA International Center
In Yoga excellence
Mahesh Nagar Jalna road Aurangabad
No comments:
Post a Comment